परम पजनीय परम तपस्वी श्री श्री जगतदास गुरू महाराज जी को कोटि कोटि प्रणाम !!

... महाराज जी अपने गुरू महाराज जी की आज्ञा के अनुसार भजन सेवा में इतने मगन हो गये कि र्इश्वर का नाम लेते लेते र्इश्वर का रूप बन गये। संगत गुरू महाराज जी से बहुत ज्यादा प्रेम करने लगी। गुरू महाराज जी ने अपने जीवन का एक ही मकसद रखा र्इश्वर के नाम का सिमरन और सेवा । इसके इलावा उनको कोर्इ भी सांसारिक कार्य से लगान नही है। गुरू महाराज जी रोज़ाना रात को 2 बजे उठ जाते और स्नान करके 4-5 घण्टे समाधि लगाते और सुबह को लंगर का कार्य संभालते और संगत को भभूती, प्रशाद भी देते। उनकी तपस्या का प्रभाव इतना हो गया कि संगत उनको अपना दुख बताती और उनसे भभूती प्रशाद लेकर अपने दुख दूर कर लेती। संगत का विश्वास महाराज जी पर बहुत बड़ गया। उनसे बे-पनाह प्रेम करने लगे। अगर डेेरे में कोर्इ दुख कष्ट वाला कोर्इ मार्इ बाबू आता महाराज जी सबसे पहले भजन सेवा करने के लिए कहते और साथ में भभूति प्रशाद देकर उनके दुख हरते। भजन सेवा से और गुरू महाराज जी की दी हुर्इ भभूति से संगत के दुख कट जाते। इससे संगत उनको र्इश्वर का रूप मानने लगी। महाराज जी शुरू से ही बड़े शान्त स्वभाव के हैं। कभी भी किसी को बुरा भला नही कहा और अपने गुरू महाराज जी को र्इश्वर मानते हुये उनकी आज्ञा अनुसार अपने जीवन को ढाल लिया। जब भी संगत के दुख कष्ट दूर होते तो उसका श्रेय वह अपने गुरू महाराज जी को ही देते कि उनकी कृपा से यह सब ठीक हुआ है। वह अपने आपको कभी भी आगे नही आने देते है। महाराज जी जैसे संत महापुरूष हम सब प्राणियों का उद्धार करने ही संसार में आते हैं। गुरू महाराज जी जैसे महापुरूष बहुत किस्मत से मिलते हैं। महाराज जी शुरू से लेकर अब तक संगत को एक ही उपदेश देते आये हैं कि मनुष्य को र्इश्वर का सिमरन और गुरू घर की सेवा अवश्य करनी चाहिए और नाम के साथ जुड़कर अपना जीवन सफल करना चाहिए। इसके उसके बाद से 2002 तक लंगर का सेवा कार्य बड़ी र्इमानदारी से महाराज जी की आज्ञा के अनुसार संभालते रहे। श्री जगत दास जी गुरू महाराज जी कर्इ बार संगत का दुख दूर करने के लिए उनका दुख अपने उपर ले लेते हैं। खुद कष्ट सहकर संगत को सुख देते हैं। 15.3.2002 को श्री श्री चेतन दास जी महाराज जो कि गददी पर विराजमान थे अपना चोला छोड़कर हमेशा के लिए ब्रहमलीन हो गये। उनके बाद श्री जगतदास जी महाराज को बड़े महाराज जी की वसीयत अनुसार गुरू गददी का उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया गया। तब से लेकर अब तक श्री जगतदास जी महाराज जी बड़ी र्इमानदारी से डेरे का सेवा कार्य संभाल रहे हैं। संगत श्री गुरू जगतदास महाराज जी से बहुत प्रेम करती है। गुरू महाराज जी ने 16-10-2008 को बन्टू जो कि लगातार 10 वर्ष से डेरे में गुरू महाराज जी के धूने की सेवा कर रहे थे उनको अपना शिष्य बना लिया और 3 सितम्बर 2009 को श्री गरीब दास जी को गुरू गददी का उत्तराधिकारी नियुक्त कर दिया। अब श्री गरीब दास जी अपने गुरू महाराज जी की आज्ञा अनुसार डेरे का कार्यभार संभाल रहे हैं। हमारी र्इश्वर से प्रार्थना है कि श्री गुरू जगत दास महाराज जी अपने सुन्दर स्वरूप के दर्शन बिना किसी कष्ट के हम संगत को लम्बी उम्र तक देते रहें।

मंत्र सिमरण करे -- मौक्श्र का मार्ग ।।